प्रलय का आगाज़ 14-Apr-2025
प्रलय का आगाज़
जहाँ मानव दानव बन,
मानवता अपनी खो रहा
यही प्रलय का आगाज़ हो रहा ।
जहाँ जीव (जानवर) को आश्रय हीन कर,
इन्सान चैन से अपने घर में सो रहा
यही प्रलय का आगाज़ हो रहा ।
जहाँ सूख रहा हैं गला जल बिन,
और भूख से जीव (जानवर) जीवन अपनी खो रहा
यही प्रलय का आगाज़ हो रहा ।
जहाँ कट रहे है पेड़ वन के ,
और वायु, सुद्धता अपनी खो रहा
यहींप्रलय का आगाज़ हो रहा ।
कोमल खत्री,हज़ारीबाग़ (झारखण्ड) ।